Monday 10 March 2014

बदलाव के साथी ..

सिनेमा में बदलाव की  करते हुए कला सिनेमा या सामानांतर सिनेमा की भी बात करनी होगी ,क्योंकि  बदलाव की असली शुरुआत के महत्वपूर्ण पहलू तो  विषयवस्तु के आधार पर कला सिनेमा में ही होती है . नीचा नगर (चेतन आनंद ),दो बीघा जमीन (विमल राय ) ,गर्म हवा (एम.एस.मेथ्यु )और भुवन शोम के बाद हर दिशा में नए सारथी जुड़ते चले गए तो व्यावासिक सिनेमा भी प्रयोगशीलता में शामिल हुआ ,लेकिन वहां भी जोर बाजार और कमाई पर ही रहा है. विषय परिवर्तन बहुत बाद में जाकर पटकथाओं ,अभिनेताओं की नै टीम ,नए निर्देशकों ,कोरियोग्राफरों ,युवा संगीतकारों के दम पर ही हो सका .इसमें सबसे ज्यादा जोखिम उठाने वाले निर्देशकों , अभिनेताओं और अभिनेत्रियों तथा सिम्फनी के जादूगरों ने ही सिनेमा का रूपांतरण किया और उसका चेहरा भी परिवेश के अनुकूल बदला . व्यावसायिक सिनेमा के नायकों में एकमात्र आमिर खान ने इसे मन और अपनी फिल्मों लगान , तारे जमीं पर , डेहली बेली से इसे साबित भी किया .
 पर फ़ना और गजनी जैसी फिल्मों के लिए बाजार से उन्हें भी समझौता करना पड़ा है .अमीन जैसे कुछ निर्देशक है जो अब तक छप्पन और चक दे इण्डिया जैसी भिन्न स्तर की प्रयोगात्मक फ़िल्में बना रहे है. श्याम बेनेगल की वेलकम तो सज्जनपुर और अमोल पालेकर की पहेली भी इसका उदाहरण हैं .                                                                                                                                                                                                                                                                                                                            




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